धार्मिक अनुष्ठानों में बदलाव की जरूरत
भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में हाथियों का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। हालांकि, आधुनिक समय में पशु अधिकारों की रक्षा को लेकर बढ़ती जागरूकता ने इस प्रथा पर सवाल खड़े किए हैं। इसी दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, बॉलीवुड अभिनेता सुनील शेट्टी ने कर्नाटक के श्री उमामहेश्वर वीरभद्रेश्वर मंदिर को एक यांत्रिक हाथी उपहार में दिया। यह पहल पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया और कम्पैशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन (सीयूपीए) के सहयोग से संभव हुई।
मंदिर प्रशासन की सोच
मंदिर प्रशासन ने इस यांत्रिक हाथी को अपनाने का निर्णय लिया क्योंकि वे जीवित हाथियों के उपयोग को समाप्त करना चाहते थे। यह निर्णय पर्यावरण और पशु कल्याण के प्रति मंदिर प्रशासन की जागरूकता को दर्शाता है।
उमामहेश्वर का स्वागत
सोमवार को जब उमामहेश्वर मंदिर पहुँचा, तो वहाँ भक्तों ने भव्य स्वागत किया। धार्मिक संगीत, मंगल वाद्य और भजन संध्या ने इस अवसर को और भी खास बना दिया। इस प्रकार, यह मंदिर आधुनिक तकनीक को अपनाने वाला पहला धार्मिक स्थल बन गया।
यांत्रिक हाथी की खूबियाँ
यह यांत्रिक हाथी वास्तविक हाथी जैसा प्रतीत होता है और इसे इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि यह धार्मिक आयोजनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- पूरी तरह से स्वचालित और सुरक्षित संचालन
- पर्यावरण अनुकूल
- पशु क्रूरता को समाप्त करने में सहायक
- लंबे समय तक उपयोग किए जाने योग्य
सुनील शेट्टी का योगदान
सुनील शेट्टी ने इस पहल को लेकर कहा, “हाथियों का संरक्षण केवल उनके लिए नहीं, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी जरूरी है। हमें अपनी धार्मिक परंपराओं को निभाने के लिए किसी भी जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए।”
पेटा इंडिया और सीयूपीए का समर्थन
पेटा इंडिया और सीयूपीए जैसी गैर-सरकारी संस्थाएँ पशु कल्याण की दिशा में कार्यरत हैं। उन्होंने इस परियोजना को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना है कि यह पहल अन्य धार्मिक स्थलों को भी प्रेरित करेगी।
क्या यह पहल अन्य मंदिरों तक पहुँचेगी?
यदि अन्य मंदिर और धार्मिक संस्थान इस अवधारणा को अपनाते हैं, तो यह पशु कल्याण और पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा। इससे यह भी प्रमाणित होगा कि धर्म और आधुनिकता एक साथ चल सकते हैं।
सुनील शेट्टी, पेटा इंडिया और सीयूपीए की इस पहल ने दिखाया है कि परंपराओं को बनाए रखते हुए भी पशु कल्याण को प्राथमिकता दी जा सकती है। यह अभियान भारत में पशु अधिकारों की दिशा में एक नई जागरूकता लाने का काम करेगा और आने वाले वर्षों में धार्मिक आयोजनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
