बच्चों में बढ़ता कुपोषण: एक राष्ट्रीय चुनौती
उत्तराखंड में कुपोषण का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि प्रदेश में अति कुपोषित बच्चों की संख्या पिछले चार वर्षों में ढाई गुना बढ़ गई है। यह स्थिति राज्य की विकास नीतियों और पोषण सुधार योजनाओं के प्रभाव पर गंभीर प्रश्न खड़े कर रही है।
आंकड़ों में बढ़ोतरी
2020-21 में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1129 थी, जो अब 2024-25 में 2983 हो चुकी है। इसी दौरान कुपोषित बच्चों की संख्या भी 2023-24 में 4233 से बढ़कर 8374 हो गई। यह इंगित करता है कि कुपोषण के खिलाफ किए गए प्रयास अभी भी अपर्याप्त हैं।
कुपोषण के पीछे छिपे कारण
कुपोषण की बढ़ती समस्या के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
- गरीबी और बेरोजगारी – कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण लोग पौष्टिक आहार का खर्च नहीं उठा पाते।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएँ – कई ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों को समय पर आवश्यक पोषण और इलाज नहीं मिल पाता।
- पोषण जागरूकता की कमी – ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में माता-पिता को सही पोषण संबंधी जानकारी नहीं होती।
बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव
कुपोषण के कारण बच्चों की:
- शारीरिक वृद्धि बाधित होती है
- सीखने और समझने की क्षमता प्रभावित होती है
- बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है
सरकारी प्रयास और उनकी सफलता
राज्य सरकार ने कुपोषण को रोकने के लिए कई योजनाएँ लागू की हैं, जिनमें शामिल हैं:
- आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण आहार वितरण
- टेक होम राशन योजना
- पोषण अभियान और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम
लेकिन इन योजनाओं के बावजूद, अति कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि चिंताजनक बनी हुई है।
क्या किया जाना चाहिए?
- गरीब परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा योजनाएँ लागू करना
- माताओं और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण अभियान चलाना
- स्वास्थ्य सेवाओं का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार
यदि सरकार और समाज मिलकर इस समस्या का समाधान करें, तो उत्तराखंड के बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।
