शीतकाल के लिए तुंगनाथ मंदिर के कपाट बंद
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर के कपाट आज 11 बजे शुभ मुहूर्त में शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने की इस पावन घड़ी में सैकड़ों भक्त और स्थानीय लोग शामिल हुए। भगवान तुंगनाथ की डोली को परंपरागत पूजा-अर्चना और विधि-विधान के साथ मंदिर से बाहर लाया गया।
उत्सव डोली की यात्रा का आरंभ
कपाट बंद होते ही भगवान तुंगनाथ की उत्सव डोली ने पहले पड़ाव चोपता के लिए प्रस्थान किया। डोली यात्रा के दौरान ढोल-दमाऊं, शंख-ध्वनि, और भक्तों के जयघोष से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। इस धार्मिक यात्रा में स्थानीय हक-हकूकधारी अखोड़ी और हुडु गांवों के लोग भी शामिल हुए।
डोली का चोपता और भुलकण में पड़ाव
आज डोली चोपता में विश्राम करेगी। इसके बाद 5 और 6 नवंबर को यह डोली भुलकण में प्रवास करेगी। 7 नवंबर को भगवान तुंगनाथ की डोली ढोल-दमाऊं और अन्य वाद्य यंत्रों के साथ मक्कुमठ पहुंचेगी। मक्कुमठ स्थित श्री मर्कटेश्वर मंदिर भगवान तुंगनाथ का शीतकालीन गद्दीस्थल है, जहां अगले छह माह तक भगवान की पूजा-अर्चना की जाएगी।
मक्कुमठ में शीतकालीन निवास
तुंगनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद अगले छह महीने तक भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना मक्कुमठ में होगी। भक्त मक्कुमठ में जाकर भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मक्कुमठ में हर वर्ष विशेष धार्मिक आयोजन और उत्सव होते हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
तुंगनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व
तुंगनाथ मंदिर पंचकेदारों में तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 12,073 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के पात्र पांडवों ने अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव की आराधना की थी, जिससे पंचकेदार की परंपरा की शुरुआत हुई।
भक्तों की श्रद्धा और विश्वास
कपाट बंद होने के बाद भी भक्तों की श्रद्धा कम नहीं होती। वे मक्कुमठ जाकर भगवान तुंगनाथ के दर्शन करते हैं और शीतकालीन पूजा में भाग लेते हैं। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत बनाए रखती है।
