एक दर्दनाक रात: ऋषिकेश बना मूक गवाह
उत्तराखंड के तीर्थ नगरी ऋषिकेश की पावन गंगा में मंगलवार की रात एक छात्र ने छलांग लगाकर आत्महत्या की कोशिश की। 21 वर्षीय गौतम अरोड़ा नामक युवक ने गंगा में कूदने से पहले अपने भाई को एक आखिरी संदेश भेजा:
“भाई, मम्मी-पापा का ध्यान रखना। मैं आत्महत्या कर रहा हूं।”
यह एक वाक्य किसी की दुनिया बदल देने के लिए काफी था।
घाट पर रखा मोबाइल, फिर…
हरिद्वार रोड पर स्थित 72 सीढ़ी घाट पर रात 8:30 बजे के आसपास गौतम ने यह कदम उठाया। उसने पहले अपने मोबाइल से भाई को मैसेज किया, फिर उसे मंदिर के बाहर एक कोने में रख दिया और बिना किसी को कुछ बताए गंगा की ओर चल पड़ा। चंद ही पलों में वो पानी में समा गया।
स्थानीय लोगों ने दी पुलिस को सूचना
घाट पर मौजूद कुछ लोगों ने जब युवक को गंगा में कूदते देखा तो उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन किया। जल पुलिस और SDRF की टीम कुछ ही मिनटों में मौके पर पहुंची और सर्च ऑपरेशन शुरू किया। लेकिन कई घंटों की मशक्कत के बाद भी गौतम का कुछ पता नहीं चल पाया।
देहरादून के विश्वविद्यालय में पढ़ता था गौतम
पुलिस जांच में पता चला कि गौतम ऋषिकेश के मनीराम मार्ग का रहने वाला था और देहरादून के एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहा था। उसका परिवार मध्यमवर्गीय है और उसका कोई आपराधिक या मानसिक बीमारी का रिकॉर्ड नहीं मिला है।
अंदर ही अंदर टूट चुका था गौतम
परिजनों और दोस्तों का कहना है कि गौतम बेहद शांत, समझदार और पढ़ाई में अच्छा छात्र था। लेकिन हाल ही में वह कुछ ज्यादा ही गंभीर रहने लगा था। उसने कभी अपने तनाव या परेशानी को खुलकर किसी से साझा नहीं किया। अब ये सवाल सबको परेशान कर रहा है—क्या हम उसकी खामोशी को पढ़ नहीं पाए?
भाई को भेजा आखिरी मैसेज
गौतम ने जो अंतिम मैसेज अपने भाई को भेजा, वो आज भी उसके मोबाइल में सुरक्षित है। परिवार उस मैसेज को बार-बार पढ़ रहा है और रो-रोकर खुद को कोस रहा है कि काश वे कुछ पहले समझ पाते। भाई का कहना है, “अगर एक कॉल कर देता, तो मैं दौड़कर पहुंच जाता, लेकिन अब तो कुछ बचा ही नहीं…”
गौतम की तलाश में जुटी पुलिस और SDRF
जल पुलिस और SDRF की टीमें गंगा के गहरे पानी में लगातार खोजबीन कर रही हैं। बुधवार की सुबह भी तलाशी अभियान जारी रहा, लेकिन अभी तक कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। पुलिस अब आस-पास के इलाकों में भी पूछताछ कर रही है और CCTV फुटेज खंगाले जा रहे हैं।
समाज की चुप्पी पर सवाल
इस घटना ने समाज की उस चुप्पी पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं जो युवाओं की मानसिक स्थिति को नजरअंदाज करती है। परिवार, दोस्त, कॉलेज—all failed to notice कि गौतम किस दर्द से गुजर रहा था। ये सिर्फ एक छात्र की आत्महत्या नहीं, एक सामाजिक चेतावनी है।
विश्वविद्यालय परिसर में शोक का माहौल
गौतम के कॉलेज में भी इस खबर से हड़कंप मच गया है। छात्र-छात्राएं स्तब्ध हैं। प्रोफेसर और स्टाफ उसका व्यवहार शांत और सहयोगी बताते हैं। कॉलेज प्रशासन ने उसके परिवार को पूरी सहायता देने की बात कही है और छात्रों को काउंसलिंग सेवा मुहैया कराई जा रही है।
मानसिक स्वास्थ्य पर खुली बहस
यह घटना बताती है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य को भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्व देना होगा। समाज में अब भी डिप्रेशन या स्ट्रेस को कमजोरी समझा जाता है। गौतम जैसे लाखों युवा हैं जो हर दिन एक ‘मुस्कान’ का नकाब पहनकर अपने दर्द को छुपा लेते हैं।
मदद लें, आत्महत्या नहीं समाधान
उत्तराखंड पुलिस और प्रशासन ने युवाओं से अपील की है कि वे अगर किसी भी मानसिक या भावनात्मक संकट में हों, तो चुप न रहें। अपने माता-पिता, दोस्तों या काउंसलर से बात करें। राज्य सरकार द्वारा हेल्पलाइन नंबर और सहायता केंद्र उपलब्ध हैं।
गौतम का जाना एक सबक
गौतम के परिवार, उसके दोस्तों और पूरे समाज के लिए यह घटना एक गहरी सीख है। हमें अब संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। घरों में, कॉलेजों में और दोस्तों के बीच बातचीत जरूरी है। एक मैसेज, एक कॉल, एक गले लगाना…किसी की जान बचा सकता है।
