पुल के बिना अधूरा विकास
उत्तराखंड का पिथौरागढ़ जिला अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके कई गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। घरुरी गांव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां आज भी लोग नदी पार करने के लिए ट्रॉली का उपयोग करते हैं।
ट्रॉली से सफर – हर दिन मौत का डर
घरुरी गांव के निवासियों को प्रतिदिन ट्रॉली के सहारे नदी पार करनी पड़ती है। यह ट्रॉली एक छोर से दूसरे छोर तक रस्सी के माध्यम से खींची जाती है। कई बार रस्सी कमजोर पड़ जाती है, जिससे ट्रॉली में सफर करने वालों की जान को खतरा रहता है।
स्कूली बच्चों की कठिनाइयाँ
इस गांव के बच्चे रोज़ इसी खतरनाक रास्ते से गुजरकर स्कूल पहुंचते हैं। मानसून के दौरान विद्यालय जाने से रोक दिया जाता है क्योंकि बारिश में ट्रॉली का उपयोग असुरक्षित हो जाता है। बोर्ड परीक्षा के दिनों में छात्रों को अतिरिक्त पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति
बीमार व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह सफर बेहद कठिन हो जाता है। अस्पताल तक पहुंचने के लिए उन्हें भी ट्रॉली का ही उपयोग करना पड़ता है। कभी-कभी अत्यधिक खराब मौसम में एंबुलेंस तक पहुंच पाना असंभव हो जाता है।
सरकार से उम्मीद
2024 में सरकार ने यहां एक पैदल पुल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। ग्रामीणों की मांग है कि जब तक पुल नहीं बन जाता, तब तक पीएसी के जवानों को यहां तैनात किया जाए ताकि वे ट्रॉली पार कराने में मदद कर सकें। सरकार को इस समस्या पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
