महाकुंभ 2025 में प्रयागराज संगम पर एक ऐतिहासिक पल देखा गया, जब एप्पल कंपनी के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल ने शाही स्नान किया। भगवा वस्त्रों में सजी लॉरेन ने निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद सरस्वती के साथ रथ यात्रा में भाग लिया। यह दृश्य भारतीय संस्कृति और वैश्विक आध्यात्मिकता के संगम का प्रतीक बन गया।
“कमला”: लॉरेन पॉवेल का नया नाम
महाकुंभ में कल्पवास के दौरान लॉरेन पॉवेल को ‘कमला’ नाम दिया गया। यह नाम भारतीय परंपरा और संस्कृति से प्रेरित है। पौष पूर्णिमा के दिन संगम में पहली डुबकी के साथ लॉरेन ने अपने कल्पवास की शुरुआत की। कल्पवास का यह एक महीना आध्यात्मिक साधना, तप और ध्यान का समय होता है।
कमला ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि महाकुंभ में भाग लेना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण निर्णय था। उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं की सराहना करते हुए बताया कि यह आयोजन आत्मा की शुद्धि और शांति के लिए अद्वितीय है।
शाही स्नान की विशेषता
महाकुंभ का शाही स्नान एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र परंपरा है। स्वामी कैलाशानंद सरस्वती के नेतृत्व में लॉरेन पॉवेल ने इस परंपरा में भाग लिया। रथ यात्रा के दौरान संगम तक पहुंचकर उन्होंने अमृत स्नान किया।
लॉरेन की भगवा वस्त्रों में उपस्थिति ने दुनियाभर के श्रद्धालुओं और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया। यह दृश्य भारतीय आध्यात्मिकता के प्रति उनके गहरे सम्मान को दर्शाता है।
भारतीयता और वैश्विक प्रभाव
लॉरेन पॉवेल का महाकुंभ में भाग लेना भारतीय परंपराओं की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि स्वामी कैलाशानंद सरस्वती के सानिध्य में उन्होंने कई आध्यात्मिक पहलुओं को समझा।
महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर यह दर्शाते हैं कि आस्था और श्रद्धा की यह परंपरा किस प्रकार मानवता को जोड़ती है। लॉरेन की भागीदारी ने इस आयोजन को और भी विशेष बना दिया।
प्रयागराज का गौरव
प्रयागराज, जिसे धर्म और आध्यात्मिकता का केंद्र माना जाता है, महाकुंभ जैसे आयोजन के माध्यम से विश्वभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। संगम पर डुबकी लगाना पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
लॉरेन पॉवेल की उपस्थिति ने इस आयोजन को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। यह भारतीय संस्कृति की व्यापकता और गहराई का प्रमाण है।
महाकुंभ 2025 में लॉरेन पॉवेल जॉब्स की भागीदारी ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया है। उनकी भगवा वस्त्रों में संगम पर उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि आध्यात्मिकता की कोई सीमा नहीं होती। यह घटना भारतीय संस्कृति की अद्वितीयता और सार्वभौमिकता का प्रतीक बन गई
