लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण के निजीकरण की योजना के खिलाफ सोमवार को प्रदेश भर में बिजली विभाग के कर्मचारी काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज करेंगे। यह निर्णय राज्य सरकार द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगमों को प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत संचालित करने की योजना के विरोध में लिया गया है।
बिजलीकर्मियों का विरोध क्यों?
बिजली निगमों के निजीकरण के फैसले के तहत राज्य सरकार ने ट्रांजक्शन एडवाइजर (टीए) की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की है। बिजलीकर्मी इस निर्णय को राज्य के उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हितों के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि यह कदम बिजली की दरों में वृद्धि करेगा और सेवा की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।
काली पट्टी का संदेश
सोमवार को बिजली विभाग के कर्मचारी काली पट्टी बांधकर कार्य करेंगे। यह प्रदर्शन सरकार को यह संदेश देने के लिए किया जा रहा है कि कर्मचारी इस निर्णय से असहमत हैं।
निजीकरण से उपभोक्ताओं पर संभावित असर
बिजलीकर्मियों के अनुसार, निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है:
- बिजली की दरें बढ़ेंगी: निजी कंपनियां अपने मुनाफे को प्राथमिकता देंगी, जिससे बिजली महंगी हो जाएगी।
- ग्रामीण इलाकों की अनदेखी: निजी कंपनियां केवल शहरी और लाभदायक इलाकों पर ध्यान देंगी।
- सेवा की गुणवत्ता घटेगी: कर्मचारियों की छंटनी और लागत में कटौती का असर सीधे सेवा पर पड़ेगा।
जनजागरण अभियान
रविवार को बिजलीकर्मियों ने विभिन्न अपार्टमेंटों के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) के पदाधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें निजीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में अवगत कराया। आरडब्ल्यूए पदाधिकारियों ने बिजलीकर्मियों के इस विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है।
उपभोक्ता परिषद ने सीएम को लिखा पत्र
उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर निजीकरण के नकारात्मक प्रभावों के बारे में सचेत किया है। पत्र में आग्रह किया गया है कि सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार करे।
सरकार का पक्ष और कर्मचारियों का जवाब
सरकार का दावा है कि निजीकरण से सेवाओं में सुधार होगा और दक्षता बढ़ेगी। लेकिन बिजलीकर्मी इसे केवल मुनाफे की सोच मानते हैं, जो उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हित में नहीं है।
आंदोलन की अगली कड़ी
बिजलीकर्मियों ने अपने विरोध को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की योजना बनाई है। यदि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो वे बड़े पैमाने पर रैलियां और प्रदर्शन करेंगे।
बिजली के निजीकरण के विरोध में उत्तर प्रदेश में बढ़ते असंतोष से यह साफ है कि यह मुद्दा सरकार और कर्मचारियों के बीच एक बड़ी चुनौती बन सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और कर्मचारी इस मुद्दे को कैसे सुलझाते हैं।
