उत्तराखंड में दुर्लभ खोज
उत्तराखंड के जंगलों में एक दुर्लभ फिशिंग कैट मिलने की खबर वन्यजीव प्रेमियों के लिए उत्साहजनक है। यह प्रजाति आमतौर पर पूर्वी और दक्षिणी भारत में पाई जाती है, लेकिन उत्तराखंड में इसकी उपस्थिति एक विशेष खोज मानी जा रही है। वन विभाग की तत्परता के कारण इस संकटग्रस्त जीव को बचाया जा सका।
कैसे मिली यह दुर्लभ बिल्ली?
बराकोली सितारगंज रेंज में वनकर्मी जब गश्त कर रहे थे, तब उन्होंने इस दुर्लभ बिल्ली को गंभीर अवस्था में पाया। वह अपने पिछले हिस्से को हिला नहीं पा रही थी और कमजोर लग रही थी। वन विभाग की टीम ने तत्काल उसे नैनीताल रेस्क्यू सेंटर पहुँचाया, जहाँ चिकित्सा सहायता दी गई।
फिशिंग कैट की खासियत
फिशिंग कैट का मुख्य आहार मछलियाँ होती हैं और यह पानी में बेहतरीन तरीके से शिकार करने में सक्षम होती है। इसका वैज्ञानिक नाम Prionailurus viverrinus है। इसे आमतौर पर वेटलैंड्स, दलदली क्षेत्रों और झीलों के पास देखा जाता है। लेकिन उत्तराखंड में इसकी उपस्थिति बहुत दुर्लभ मानी जाती है।
बचाव और पुनर्वास प्रक्रिया
आईएफएस अधिकारी आदित्य रत्न के अनुसार, इस दुर्लभ जीव को बचाने के लिए वन विभाग की विभिन्न टीमों ने मिलकर काम किया। प्रमुख रूप से पश्चिमी सर्कल के मुख्य वन संरक्षक, तराई ईस्ट डीएफओ, डीएफओ नैनीताल और चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस बिल्ली की देखभाल की। पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद इसे जंगल में छोड़ दिया गया।
कॉर्बेट में दुर्लभ खोज
अक्टूबर 2023 में ग्रेटर कॉर्बेट लैंडस्केप में फिशिंग कैट की पहली तस्वीर कैमरे में कैद हुई थी। यह खोज इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि उत्तराखंड में भी इस दुर्लभ प्रजाति का अस्तित्व बना हुआ है।
फिशिंग कैट संरक्षण की आवश्यकता
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने फिशिंग कैट को संकटग्रस्त सूची में डाला है। इसका मुख्य कारण आर्द्रभूमियों का नष्ट होना, जल प्रदूषण और मानवीय हस्तक्षेप है। उत्तराखंड में इस बिल्ली की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए इसके संरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ बनानी होंगी
फिशिंग कैट की उत्तराखंड में मौजूदगी इस क्षेत्र की जैव विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। वन विभाग की मुस्तैदी से इस दुर्लभ जीव को बचाया जा सका, लेकिन इसके संरक्षण के लिए दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है।
