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नेशनल

पहाड़ों में दौड़ेगी रेल: ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट ने पकड़ी रफ्तार, ट्रैक बिछाने की तैयारी शुरू

विनोद भण्डारी
Last updated: 2025/04/08 at 6:21 AM
विनोद भण्डारी
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6 Min Read
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750 करोड़ रुपये में बिछेगा 125 किमी लंबा ट्रैक

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया गया है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक प्रस्तावित रेलवे लाइन के ट्रैक बिछाने का सर्वे अब शुरू हो चुका है। भारतीय रेलवे की सहयोगी कंपनी इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड इस कार्य को लगभग 750 करोड़ रुपये की लागत से पूरा करेगी। लक्ष्य है कि 2027 तक इस पूरी रेल लाइन पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू हो जाए।

Contents
750 करोड़ रुपये में बिछेगा 125 किमी लंबा ट्रैकसुरंगों का विशाल जाल2026 तक सभी सुरंगों में होंगे ब्रेकथ्रूबेलासलेस ट्रैक की खासियत19 में से आठ पुल तैयार, शेष 2026 तक पूरे होंगे83 किमी सुरंगों में अंतिम परत का काम पूर्णरेलवे स्टेशन भी तेजी से तैयार हो रहेबाकी 9 स्टेशनों के लिए जारी होंगी निविदाएंस्थानीय लोगों के लिए वरदानचारधाम यात्रा को मिलेगा नया आयामरोजगार के अवसर और आर्थिक विकासपर्यावरण के प्रति संवेदनशील निर्माणनिष्कर्ष: उत्तराखंड के भविष्य की रेल

सुरंगों का विशाल जाल

इस परियोजना को भौगोलिक रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण रेलवे परियोजनाओं में गिना जा रहा है। इसमें कुल 16 सुरंगें बनाई जा रही हैं, जिनकी लंबाई 213 किलोमीटर है। अब तक इन सुरंगों में से 193 किलोमीटर तक का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। खास बात यह है कि मुख्य सुरंगों की लंबाई 125 किमी है, जिसमें 93 किमी तक की खुदाई हो चुकी है।

2026 तक सभी सुरंगों में होंगे ब्रेकथ्रू

इन सुरंगों में कुल 46 ब्रेकथ्रू (यानि दोनों ओर से खोदी जा रही सुरंगों का मिलन बिंदु) निर्धारित किए गए हैं, जिनमें से 35 ब्रेकथ्रू पहले ही सफलतापूर्वक पूरे किए जा चुके हैं। बाकी 11 ब्रेकथ्रू को वर्ष 2026 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य है।

बेलासलेस ट्रैक की खासियत

इस परियोजना में आधुनिक रेलवे निर्माण तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। सुरंगों के भीतर जो ट्रैक बिछाए जाएंगे, वे बेलासलेस ट्रैक होंगे। यानी इनमें गिट्टी का प्रयोग नहीं होगा। इससे ट्रैक अधिक टिकाऊ और स्थायी बनते हैं। यह खास तौर पर सुरंगों के लिए आदर्श तकनीक है, जहां कम जगह और उच्च सुरक्षा प्राथमिकता होती है।

19 में से आठ पुल तैयार, शेष 2026 तक पूरे होंगे

125 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर कुल 19 पुलों का निर्माण किया जा रहा है। इनमें से 8 पुल – जैसे चंद्रभागा, शिवपुरी, गूलर, ब्यासी, कोड़ियाला, पौड़ी नाला, लक्ष्मोली और श्रीनगर – पहले ही बनकर तैयार हो चुके हैं। शेष 11 पुलों का लगभग 60% कार्य पूरा हो चुका है और सभी पुलों को 2026 के अंत तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।

83 किमी सुरंगों में अंतिम परत का काम पूर्ण

सुरंगों के निर्माण में सिर्फ खुदाई ही नहीं बल्कि उनकी फिनिशिंग भी अहम होती है। अब तक 83 किलोमीटर लंबी सुरंगों में अंतिम लाइनिंग (छत, दीवारों की मजबूती) का कार्य पूरा कर लिया गया है। इसके बाद इन सुरंगों में ट्रैक बिछाने के लिए सर्वे शुरू कर दिया गया है।

रेलवे स्टेशन भी तेजी से तैयार हो रहे

इस प्रोजेक्ट के तहत 13 रेलवे स्टेशनों का निर्माण प्रस्तावित है। इनमें से वीरभद्र और योगनगरी स्टेशन 2020 में बनकर तैयार हो चुके हैं। वहीं शिवपुरी और ब्यासी स्टेशन के लिए हाल ही में 61 करोड़ रुपये की लागत से निविदा प्रक्रिया पूरी की गई है।

बाकी 9 स्टेशनों के लिए जारी होंगी निविदाएं

बाकी बचे 9 रेलवे स्टेशनों के लिए तीन चरणों में निविदा प्रक्रिया पूरी की जाएगी:

  • पहली निविदा: देवप्रयाग, जनासू, मलेथा और श्रीनगर स्टेशनों के लिए।
  • दूसरी निविदा: धारीदेवी, घोलतीर, तिलड़ी और गौचर स्टेशनों के लिए।
  • तीसरी निविदा: कर्णप्रयाग स्टेशन के लिए, जो इस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा स्टेशन होगा।

इन सभी स्टेशनों के निर्माण कार्य पर कुल 550 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

स्थानीय लोगों के लिए वरदान

यह रेलवे लाइन स्थानीय निवासियों के लिए एक बड़ा तोहफा है। लंबे समय से पहाड़ी इलाकों में परिवहन की कठिनाइयों का सामना कर रहे लोगों को इससे राहत मिलेगी। साथ ही, ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के बीच यात्रा समय में भी भारी कमी आएगी। लोगों को तेज, सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा का विकल्प मिलेगा।

चारधाम यात्रा को मिलेगा नया आयाम

यह प्रोजेक्ट धार्मिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इससे चारधाम यात्रा और भी सरल और सुलभ हो जाएगी। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के बीच रेल संपर्क जुड़ने के बाद यात्री आसानी से बद्रीनाथ, केदारनाथ, और हेमकुंड साहिब तक पहुंच सकेंगे।

रोजगार के अवसर और आर्थिक विकास

इस परियोजना के चलते उत्तराखंड में स्थानीय रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है। निर्माण कार्य, मजदूरी, तकनीकी सहयोग और बाद में स्टेशन संचालन जैसे कई क्षेत्रों में युवाओं को रोजगार मिल रहा है। साथ ही, पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय व्यापार और होटल व्यवसाय को भी लाभ पहुंचेगा।

पर्यावरण के प्रति संवेदनशील निर्माण

पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखते हुए इस परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। आधुनिक मशीनों और तकनीकों का उपयोग कर पर्वतीय क्षेत्रों में न्यूनतम क्षति के साथ निर्माण कार्य किया जा रहा है। इरकॉन और रेलवे दोनों ने ही पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए जरूरी उपाय अपनाए हैं।

निष्कर्ष: उत्तराखंड के भविष्य की रेल

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के भविष्य की नींव है। यह परियोजना न सिर्फ यात्रियों की सुविधा को बढ़ाएगी, बल्कि उत्तराखंड को आर्थिक, धार्मिक और पर्यटन के दृष्टिकोण से नए मुकाम पर ले जाएगी।

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विनोद भण्डारी April 8, 2025 April 8, 2025
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